पृष्ठ:२१ बनाम ३०.djvu/१८३

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1 ( १७० ) भाव से दिन व्यतीत करते थे।वे आज अंग्रेजी राज्य में, न सभ्यता की छत्रछाया में, उन्नति के स्वर्ण-दिनों में, ऐसा सुन्दर जीवन व्यतीत कर रहे हैं! सत्रहवीं शताब्दि में फिलोमौरने कहा था कि भारत अपने पचे-नुचे माल से औरों का पेट भर सकता है, भारत में अनेक प्रकार की मिट्टी और जल-घायु होने से यह अपनी भावसता' के लिय सभी पदार्य पैदा कर सकता है। पूर्व में-आसाम, व माल, बिहार और उसोसा इन प्रान्तों में रखर, तेलाल, वेस, जास, नीज, जूट, कागज़, घमहा, रेशम, प्रफीम, तम्बाइ यापचानी, चावल, कोयला, लोहा, शोरा, अषरस इत्यादि पाये जाते हैं और उपजते हैं। दस्तकारी में हायोदांत का काम, छाया बनाना, शंख का काम, दाके को मलमन, जरदोजो ओर खटाई का काम मशहर है। उत्तर में संयुक्त प्राम्त, मध्य-देश, काश्माय, राजपूताना, मभ्यमारत, पवार, सीमा प्रान्त शामिल है । यहाँ राल, धूप, लाह, तेलहन, स्त्र, साबुन, मोमबसो, फत्था हर्ष, बहेड़ा, रेशम, मन, धमडा, दरा, गेहूँ अफाम, चाय, शाशम, देवदा जस्ता, ताम्बा, नमक, शोरा, सुहागा इत्यादि द्रव्य पाये जाते हैं। दस्तकारी में टाम के सामान, लाहसे रंग धातु के सामान सी कई 1