पृष्ठ:२१ बनाम ३०.djvu/१८५

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सेयार करने केही योग्य है। तिस पर भी तुर्रा यह कि माल के व्यापार का भी बतला अधिकार विदेशियों के कृषिजात श्यों को प्रचुरता है.पर दस्तकारी की कमी है। पश्चिम मारत में उत्पन्न द्रव्यो सथा कारोगरी दोनों की कमी है। पर दशिण भारत में फिर भी प्रचुरता है। वर्मा में हुनर बहुत है । सत्तर भारत में भी फारोगरी की कमी नहीं है। पर सव के प्रथम ईस्ट-इन्डिया कम्पनो मे और उसके पीछे ब्रिटिश गवर्नमेंट मे और जय माम्राज्य बाले व्यापारियों में इस बात पर घटा जोर दिया है कि भारत कच्चा माल सामान तयार होने के लिये विदेश भेजे और वना हुभा माल साम्राज्य में उत्तम कह कर खरीदे । जैसा मैकाले ने कहा था कि अंग्रेजी उद्योग धन्धों का प्राचर्य जनक विस्तार और भारत की परि पता दोनों सम-सामयिक है । प्रौद्योगिक कमीशन के सामने एक गधार मे पहा था कि भारत को बाहर वालों के लिये पैदावार षढ़ामो चाहिये अर्थात् ईस्ट इन्डिया कम्पनी के शब्दों मे उसे बाहर भेजने के लिये कच्चा माल पैदा करने का पर वनमा चाहिये। अमागे भारत ने भी इसी पर सन्तोष किया और उसे विश्वास हो गया कि यह रपि प्रधान देश है वह क्या माल मे चला गया । पच्छिमी समुद्र सलका मारियल तथा उसक पेशों का कारवार, अवरस्म की माने, कुल फवा पमा