पृष्ठ:२१ बनाम ३०.djvu/१९२

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(183) 1 शिक्षा नहीं पाई। और इनमें १६, ८०, ५३१ तो पढ़ भी नहीं सकते थे। यदि ये प्राकडे पाद दे दिये जायं सो २०, २७, ५५५ ही पन्चे ऐसे पचते हैं जिनमें कुछ काम की शिक्षा मिल यही है और यह फो संकट ३ उतरती है जो अत्यन्त भयानक है। ५५ लास्य विद्यार्थियों की शिक्षा के लिपे जितना धन सर्च किया जाता है यह समुद्र में फेंक देने के परापर है। १४५ के अंत में स्कूल जाने योग्य अवस्था के फीसंक २४ सहके स्कूलों में पढ़ते थे। १९१३.० में भारत सरकार ने विद्यार्थियों की सख्या ४५ लाख बताई। इतना काम ५४ यो में हुआ था। वर्षा का यह गणना १८५४३० से की गई है। जब सर चावल उस में शिक्षा-सम्बन्धी सरोता भेजा था और जिसके फल स्वरूप शिक्षा विभाग पना था । सन् १-७०६० में ग्रेट ब्रिटेन पजूकंशम एफ्ट पास हुआ। उस समय गलैंड में शिक्षा को घही अवस्था थी जो आज दिन भारत में है। गलेर में १८३३ से शिक्षा के प्रचार के लिये धम की सहा पता मुख्य फर वर्ष स्कूलों को दो बाने लगी । १८७० और १८८१ के बीच शिक्षा शुखफ-रहित और अनिवार्य की गई और १२ वर्षों मे दी औसत की सेकदा ४३.३ से बढ़कर प्रायः सी में १०० हो गया। इस समय गलैस और येरस की ४ कपेट की बस्ती में स्कूलों में जाने वाले बचों की संख्या