पृष्ठ:२१ बनाम ३०.djvu/१९४

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( fue ) प्रय स्यास्य सुधार की बातों को लोगिये। प्लेग, मा और मलेरिया के प्राधान्य से पता चलता है कि शहर और दास सयर स्यास्य-सुपार प्रबन्ध का श्रमाय है। भारत में प्रत्येक मनुष्य की परमायु का प्रोसत यहुत दो फम अर्यात् २३.५ होने के कारणों में यह अमाष भी एक कारण है। गले मे परमायु ४०, म्यूजीलैण्ड मे ६० वर्ष है। रोगी की चिकित्सा के मार्ग में मुख्य कठिमाइयाँ ये है कि विदेशी किस्सा विशेष प्रणाली का-यिशेप कर गाँपों मे उसे जम देया जाता है। और भारतीय चिकित्सा पति को कोई नहायता महीं दी जाती। सरकारी अस्पताल, सरकारा वाणाने और सरकारी सराफ्टर सभी विदेशी चिकिस्मा ग्दति पाले होने चाहिये। मायुपैदिक और यूमामो दयाए प्रस्पताल, व्याणामे सथा पेच हफीम माम्य नहीं समझे पते। और वैधक तथा मायर्षदिक, युनामी पतियों के चकित्सकों की सहायता करना निन्य' समझा जाता है विनकोर राय ७२ घेद्य शालाओं को सहायता दे रहा है। मे १९१४-१५ मे ऐलोपेथिक अस्पतालों को अपेक्षा २२ मार अधिक रोगियों को चिकित्सा की गई थी। सरफार यह ली मोति मानती है कि वह ऐलोपैयो दवा और राफ्टरों को पिनी देहावी प्रक्षा की सहायता के लिये पहुंचाने मे पूर्ण समय है। और यह भी उससे छिपा नहीं है कि रसको फो । 1