पृष्ठ:२१ बनाम ३०.djvu/२०६

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यो घोसी का जोड़ा मील में ३) रुपये का सैयार होता है उसे ये सुत्राचोर आपस में झूठ-मूठ ही खरीद पेच कर सस पर नफा कमा लेते है और सब वह ६)का गरोष प्रमा को पेया मोमाम सठाते हैं इसका जुर्माना गरीब भाई देते हैं और सरकार मिल मालिकों से-उसके को माल के व्यापारी से ( २०१ ) समी निकम्मे और दूसरे व्यवसायों की योग्यता से हीन पुरुप हैं। अवैध रूप से इन मामलों में बड़े २ मगरमच्छ छोटी २ मवलियों को निगल आते है उनकी वास में इस समय महीं कईगा, मैं केवल उस सरकार की तरफ ऊगली उठाता हूँ जिसने कवन म्यासी भामद हाने के लिये ऐसे कानून बना दिये हैं जिसके कारण कुछ भयंकर (जीदार या छाकटे चलते पुों क्षम-खुमा जुश्रा खेल कर मौके सौ करते हैं। या सय कर ये पैठते हैं । और यह वस्तु प्रजा को सस्ती और महंगी मिलमा हर तरह उन्हीं के आधीन है। गेई, ई, सोमा, चाँदी का तो सहा चलता ही है। कपड़े को मिलों का और दूसरे ऐसे कारनामों का, जिनसे सर्व साधारण के नित्य काम में प्राने वाली सामग्री तयार होतो है-उनके शेयरों का भी सष्टा रतने जोर से घसता है कि वस्तुओं के दामों में भय कर घट बड़ होती रहती है। इसका सीधा साधा परिणाम यह है कि आता है जिसे कि उसकी सस्त जसरत है। अर्थात् ये ज्यारी नस्वार्थी सहवाजों से-अमेक टेक्स के बहाने से अपना 1