पृष्ठ:२१ बनाम ३०.djvu/२१०

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

( २०३ ) झूठा और छली है शायद ही कोई होगा । सरे बाजार में बापाना यस्तु कमजोर और निकम्मो होने के कारण बदनाम है, पर इस कंगले देश के मुकर लोगों ने इतनो सस्ती मजूरी में यह रही माल दिया कि हमारे प्रमागे भाई सस्तेपन के सामने उसफे रद्दीपन की कुछ परया महीं करते । पिछशा बातों का जिक्र नहीं करता । अप्सहयोग के आन्दोलम के कारण जो बादी के वस्त्रों का व्यवहार चला बस जापान ने मादी बना कर मेज दा । और उस पर स्वदेश में बना माल लिख दिया। क्या कोई भी स्वामिमामी गैरत पाला देश खुल्लम-खुला तिमा मुझ और बेमानी कर सकता है। ग्रामोफोन, हारमोनियम, साइकिल, खिलोमे, रग, वारनिरा और प्रत्येक आवश्यकता की वस्तु उसने तत्काल हमारे सामने रस्म फर हमारे पैसे छीन लिये है। छीमे क्या ठग लिये है, क्योंकि व्यवहार से हम देखते हैं कि प्रत्येक वस्तु दी और पाहियात है । मैं यह पता है कि इस वेचक से देश की रक्षा करना क्या सरकार का काम नहीं था। मालों पर सेन्सर बैठाना, कन्हें आल के कानूम से पफमा क्या सरकार का न्याय पूर्ण कर्तव्य म था। पर महीं, शक्तिशाली और हाकिमी की रींग हॉकमे वाले अंग्रेजों को स्वार्थ, मालध और खुद- परस्ती ने अन्धा कर दिया है-वे पैसे के रोम से अपनी इस पदनामी और पाप व्यहार को लापरवाही से कर ये हैं। यही r1