पृष्ठ:२१ बनाम ३०.djvu/२११

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२०.) बात श्रीर देशों के सम्बन्ध में कही जा सकती है। साथ होघे कानून भी नहीं भुलाये जा सकते जो देश के व्यापार, शिल्प पार उद्योग-धन्धों को उफसने नहीं देते है। भूत ब्रिटिश सरकार ने विलायत में हिन्दुस्तान का कपडा पहनना फाननन जुर्म बतायां था। और ८० नम्बर से अधिक का सूत कातना भारत में कानूनन जुर्म करार दिया गया। इसी तरह कोई भी भाविष्कार को पेटेन्ट करने के कामम अत्यन्त स्वार्थ और छल-पूर्ण हैं। इन सघ के साथ हम शर्तपंधे कुलियों के कानों का भी माम लेना नहीं भूल सकसे जिसे हम अपने सिर पर लात मारने के समान अपमानकारक समझते हैं। और जो सरकारी पद्धति का लाञ्छनीय दोप है। कानूनकारों और जमींदारों से सम्बन्ध रमने वाले कानूनों पर पहुत ही गम्भीरता स विचार करने की जरूरत है। जिनसे यह पता लगेगा कि ये कानूम था तो जान घूझ कर किसी अत्याचारी राजा ने स्वर्थान्य होकर बनाये हैं या उसे अपनी प्रजा की परिस्थितिका कुछ शान नहीं है। पर मुझे यह प्रकट करते सेव होता है कि ये कानूम ठीक अपने स्वरूप में बड़ी खोज और झाँच के पीछे अच्छी तरह इरादा करके बनाये गये हैं और गरीब किसानों का सत्यानाश प्रत्यन्त हड़तापूर्वक किया जा रहा है। मैं यह भी कहने में स कोव की प्रापश्यफया नहीं समझता है कि यदि कथा माल तैयार कप में भारत सरकार को बाहरी कारणानेवालों से गहरी !