पृष्ठ:२१ बनाम ३०.djvu/२१७

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२१०) 1 बदौलत उन्हें इस लोक के अधिकार प्राप्त होते हैं । वही पैसा भारत में कितना है। इस सम्बग्ध में जो आंकड़े और सम्पत्ति शास्त्र के अन्य प्रकाशित हुए हैं ये पाठकों की दृष्टि में पड़े होंगे-मैं व्यर्थ उन मीरस हिसायों को दुहरा कर पाठकों के साय अत्याचार नहीं करूंगा, मैं केवल यह कह सकता है कि इस समय भारत सबसे गरीष देश है और उसकी सम्पत्ति घराबर क्षय हो रहो है और उन सबकी जिम्मेदार सरकार की अनेक ऐसी मोतियाँ हैं जिनसे खर्च का एक बड़ा भारी पनाला बराबर जारी रहता है। सरकार मे हमसे कहा ही नहीं हम विश्वास दिलाया है और उसका आयोजन भी किया है कि भारत कृषि प्रधान देश है-यह कथा माल विदेशों में भेजे। इसके पूरे सुमाते उसमे उत्पन्न कर दिये हैं। पर हम यह को बार कह चुके हैं कि यह भूल भोर भ्रम है। भारत कमी कच्चे माल उत्पन्न करके दूसरे देशों को देने वाला देश महीं है । क्या यहाँ भूमि काफी नहीं है। क्या यहाँ मजूर काफी महीं हैं। क्या यहा मजूरी सस्ती नहीं है ? क्या यहाँ का जल-धायु परि श्रम और काम धन्धे करने के योग्य नहीं है। और कभी भारत मे क्या ऐसे व्यापार किये महीं थे।पर शोक है सब कारण जाम फर-सप पात समझ कर-मी सरकार इस तरफ ध्यान नहीं करती है। मैं प्रथम कहाभाया है कि कृषि, शिल्प और वाणिज्य दम तोन उपायों से ही सम्पत्ति उत्पन्न होती है। पर