पृष्ठ:२१ बनाम ३०.djvu/२१८

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( २९१ ) सरकार कृषि को ही उत्तेजन देती है। शिल्प, वाणिज्य को बीम चुकी है । हम कोटी के मोल कच्चा माल देकर छ्छे हाथ पैठ रहते हैं और सोने के मोल यही तैयार माल विदेश से म्पद कर मन मारसे है। हमारे घरके मजूर मार माली बैठे । उन्हें चार पैसे का रोजगार नहीं है और हम अपना मान पीपे से ऊँची ऊंची मजूरी देकर तैयार कराने को मजपूर ध्ये गये हैं। पद ठीक वैसी ही मर्मता-पूर्ण ठसक है जैसे म परिण गृहस्थी म्ययं हाई कहे वह 'पेटों के रहते प्रत्येक मि मजूरी देकर गैरों से कराधे। क्या यह सुनी ए सकता कदापि नहीं। किस किस तरह के भयानक झानून मना कर वाणिज्य T शिल्प को मार डाला गया है और किस तरह गराम सामों के गला दबाने के प्रायोजन उत्पन करके उन्हें जोता जमीन में गार दिया गया है यह वास में ऊपर फह भाया इसके सिवा बदी मारी बात इसी सम्बन्ध में जो कहमी है जिसके लिये सरकार मुल्लम-नुमा कानून बना फर वद नहीं हो सकती थी-यह पात उद्योग पन्धों के सम्बन्ध एवी पीर लापरयाही का व्यवहार है। मो कमी फिसी भव और समृनिशानी राजा के लिये शोमा की बात हो सकी। । सलो और फालिको से निकले हुए छात्रों की मही पलीद