पृष्ठ:२१ बनाम ३०.djvu/२२२

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प्रायद इस लिये कि यूरोप को कारीगरी केसचे मावश' मिले। और ज्योतिष का उद्धार किया सोशायद इस लिये कि यूरोप ( २१५ ) विद्या को देवताओं से मांगा और उस से संसार का उपकार किया। आज यह मामला है-" मज़ बदला गया ज्यो ज्यों का की"1 किसी भी बड़े शहर में आइये और उस की सडक पर से एक मुट्ठी धूल उठा कर देखिये जरूर उस में से दो पार गल्टर धैध निकास प्राधेगे। प्रत्येक गली में, प्रत्येक मोड़ पर, प्रश्पेक मुझे में मस्ती की तरह चिपके हुए हैं। इन के फरदे में पेगो को श्रामे की देर है, बस हथकंडे बनाते हैं कि टॉट पर एक बाल नहीं रहता । उम्टे उस्तरे से मस्से हैं। पेयों की पया ऐसी है कि येघारे विधाहीम, धमहीन, याहीन अपनी मैत्री कुवैती शीशियों और झूठी सधी दवा-दारू को लिये बैठे दिन फोड़ रहे हैं। माया सो हजम । सरकार का इस सम्बन्ध में क्या कम्य या यह सोचने की बात है। सरकार कामठी है कि मारत गरीब है। वह इन राक्टरों को देहातों में सब जगह नहीं पहुंचा सकती । उस के निये यह अवश्य है। देहाठों में पदी पेचारे अयोग्य असहाय पेच गरीब प्रभा की प्राण- सेता है करते हैं । सर- कार ने पुरातत्य विभाग के उद्धार करने में ध्यान दिया सा 1 दुनियादार इस अपूर्व भारती विद्या का ईमान बिगाड़ कर साई बना ते । पर उसने आयुर्वेद को इतना उपयोगी