पृष्ठ:२१ बनाम ३०.djvu/२२५

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( २१८ ) 1 7 मानो हम किसी ऐसे देश की प्रजा है जहाँ का कोई वारिस या राजा महीं है। अप धफालत के धन्धे की बात कहता हूँ। मेरी नज़र में इसकी परावर येईमान और पाजी पेशा नहीं पाया । ज्यों ज्यों बाफ्टर पड़े त्यो त्यो रोग पढ़ा और ज्यों ज्यों वकील बढ़े त्यो, त्यो अपराध बढ़े। ये लोग मुकदमेवाजों के पके सहारे हैं। इन्हीं की बदौलत मूर्ख सरपोक और पोन श्रादमी भी अदालत में मक मारमे को तैयार हो जाता है। ये भूठ के व्यापारी-भूठों के सस्ताद-पूरे गैरती का जीवन व्यतीत करते है। जिसकी देखें तवा परात, ससकी गाये,सारी रात'यह मसल उन पर प्चरितार्थ होती है । मैंने स्वय देखा है कि इन शरीफों ने चोरों को यह कह कर कि यह उस प्रविष्ठित घर का स्त्री का पार था बुलाने पर गया था, छुड़ा दिया है। इन्हें ऐसे ऐसे पाप करते म ग्लानि, न लज्जा, न जिहाज है। ये पढ़े लिनों के जीवन हैं। जिन में धर्म, दया, सहानु- भूति, प्रेम और सामाजिकता बिलकुल नहीं है । परन्तु यह तो सिर्फ उमका बाह्याचार है-नक भीतरी प्राचार व्यभिचार पाप, दिसा और वह सरह के बीमस भावों से भरे रहते हैं। दाप ! कहाँ गये थे जीयन अब प्रत्येक शिशित गुण कर्म, स्वभाष और व्यवहार में पिता की, समान पवित्र और / है 1 1 42