पृष्ठ:२१ बनाम ३०.djvu/२२७

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( २२० ) क्सिामों की बात कई धार कह चुका है। जिन के तम पर चिथड़ा तक नहीं है, जो कभी नहीं फूलता फलता, जो सदा जदार, सदा दवा, सदा दुखी, सदा अप्रमागि क रहता है। छोटे दर्जे के अहसकार और सरकारी मौकरों की पफर चशा का अनुमान फरमा कठिम है। छोटी छोटी बच्ची उम्र के नौजवान छोटी छोटी पालिका अवोध बहुओं को अपने बड़े माता पिता से छटा कर दूर देश में छोटी छोटी नौकरियों के आसरे छोटे दर्जे के मकाम किराये पर पड़े रहते है । कोई हि महीं, बन्धु नहीं, मित्र महीं, सहायक महीं। मैंने कच्ची यालिफाओं को अकेले घर में अकेली प्रसूता होते देखा। उनके बच्चे रोगी, दुर्मल, अधमरे होते हैं। बहुत से मर जाते हैं । येचारे कठिमता स अपना निर्वाह करते है। साल में जो दस' बीस रुपया जमा होता है वह एकाध चार घर जाने माने में- मर्च कर देते हैं। रिश्वत के लिये सरकारी नौकर इतमे प्रसिस हो गये हैं। कि रिश्वत देमा उनसे काम लेने वालों को एक जरूरी पर्न हा गया है। बेगरत लोग रिश्वत को हफ कह कर मिखता- पूर्वक मांगते हैं। पुलिस और साधारण प्रदशी से लेकर जज तक रिश्वत मोर है । और क्यों न हो। १०) रु. की सनया में पटवारो सरकार की राप में परिवार का गुजर कर सकता 1