पृष्ठ:२१ बनाम ३०.djvu/२३३

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( २२६ ) में अंग्रेजों मे यूरोप का कोई अंश अपने युद्धों के पुरस्कार में म मांग कर माल्टा, गुरु होप के अम्सरीप मारीशस, सेशिलास और लंका के अपने अधिकारों की दृढ़ता चाही। सन १८७५ में अंग्रेज़ तुर्को के इसी लिये मुरब्बी दने थे कि स्थल मार्ग से कोई भारत पर दष्टि न फरे। यलकान राज्यों में मुसलमान वरायर ईसाइयों की हत्या करते रहते थे। फिर भी अंग्रेजों मे उसकी परया न कर उसकी स्वाधीनता का विरोध किया।' क्रीमिया की लड़ाई अपने शिकार के पहरेदार तुर्की के लिये की गई थी। जव स्येज की नहर घमने लगी तो अंग्रेज सरे कि इससे तो भारत का मार्ग सरल हो जायगा। और उन्होंने उस का विरोध किया। पर जव महर धनगई सब उसे स्वेज़ कम्पनी से हथिया लिया। जरूरत होने पर तुर्क से साइप्रस को अपने कब्जे में ले लिया और मिथ को भी छीन लिया। यही काम । कोई दूसरा राष्ट्र कारवा तो अंग्रेज खून पामी एक कर देते। मिश्र के हाथ में आने पर उन्होंने बलकान के सम्बन्ध में भी अपनी मीति बदल दी। पूर्षी समानिया जषधलगेरिया में मिला लिया गया,अंग्रेजी ने उसे मी मान लिया। इससे यदि ८ वर्ष पहिले बनगेरिया यह फरसा तो अंग्रेज सारे यूरोप में मीपण युर मचा देखें। मिथ पर अधिकार करते समय अंग्रेजों में सब शक्तियों से यही कहा था कि हम यह अधिकार सदा के लिये महीं करते 2 1 1 . 1 U