पृष्ठ:२१ बनाम ३०.djvu/२३७

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( २३० अव से रुसियों में मध्य एशिया में प्रवेश किया तमी से अंग्रेज अफगानिस्तान को हथियाने की फिझ में थे। उन्हें भय था कि यदि रूसी अफगानिस्तान को कब्जे में कर लेंगे तो वे फारिस की खासी के गस्ते काफिरिस्सान यजीरिस्तान और स्वात आदि की सीमा प्रान्तवाली जातियों को भएकाकर पनाप तफा पहुँचेंगे। उन्होंने सन् १८३६ से १४० तक ५० वों में मार बार अफगानिस्तान पर आक्रमण किया। इन श्राममों में बहुत सर्व हुआ । मगर पीर अफगानों मे उन्हें निकाल बाहर किया। अफगानिस्तान के स्वर्गीय प्रमोर अग्दुल रहमानखो बहुत समझदार व्यकि थे, उन्हें अंग्रेज सवा कहा करते कि, कप तुम पर श्राफमण करेगा, तुम अपने यहाँ रेल सथा तार घनघालो । सय प्रबन्ध हम कर देंगे। पर अमीर ससियों के रोग को जैसा चुरा सममाते थे, वैसी ही चुरो अंग्रेजों को दवाई को भी समझते थे। घे,अपने व्यापार पर अंग्रेजों का अधिकार नहीं होने देना चाहते थे। उनका सिद्धान्त था कि जो देश हमें सबसे कम दवायेगा, यही हमारा मित्र ,रहेगा। घे अंग्रेजी के मित्र ही रहे। समके घाव हयोचुला खाँ अमीर हुए। ये अंग्रेजी पढ़े थे,और अंग्रेजों के मित्र भी थे। इनके समय में रूस दुर्किस्तान में हाथ बढ़ा रहा था। चार हजार तुर्की हिराव चले आये अमीर में j 7 .