पृष्ठ:२१ बनाम ३०.djvu/२३८

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(२३१) ! उन्हें स्थान दिया । रुसी अफगान की सोमा की देने लास थे। अंग्रेजों ने सब बातों से घबरा कर एफ मिशन अफगानिस्तान में भेजा कि यदि रूस चदाई करेगा तो क्या किया जायेगा, और साथ ही कुछ व्यापार के मुमीते भी चाहे ये अमीर मे मिशन में कह दिया कि अपने पिता की सम्धि हम भी स्वीकार करेंगे । वृत्ति मी फिर से झेंगे। मिशन की इच्छा यो का अंग्रेज अफसरों को सहायता से अफगानी सेना का संगठम हो और अफगानिस्ताम तक रोज पम आये, जिससे अकरत पड़ने पर अंग्रेजी सेना की सहायता फोरम मिख सके, पर यहाँ दाल म गली! पर प्रमार ने पहले पहल मिशन धानों के साथ जिन्हें ये फाफिर समझते थे, मोजम किया और दिली वयार का निमन्त्रण भी स्वीकार किया। इस मिशन के मारा जो सन्धि स्थापित हुए, उससे अप्रेश और कप्ती दोनों को सन्तोप दुमा । अंग्रेज इस बात से मिश्चित हो गये कि इस अफगानिस्तान के रास्त मारस पर प्राममण म करेगा और जसको भी व्यापारिक और राजनैतिफ कई फायदे मिल गये थे। कैसर मे बहुत दूर तक अफगानिस्ताम पर लक्ष्य करके ही तुर्की को अपने में मिलाया था। ससका ख्याश था कि जब तुर्क मुसलमानी राज्य हमारा साप देगा,,तव फारस, जो कि अनेक मसकी ओर से पाया जा रहा है तथा अफगानिस्ताम मी उपदय करेगा और वास्तव में यदि कस अंग्रेजों के साथ में