पृष्ठ:२१ बनाम ३०.djvu/२३९

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( २३२ ) ! न होता तो अंग्रेजों के लिये अफगानिस्तान में भारी कठिनाई का साममा पटवा । अंग्रेजों के सौभाग्य से रूस ने फारत को पहले से हो अच्छी तरह दवा रखा था और यह भी संयोग की बात हुई कि रूस का अन्त होने से प्रथम ही अंग्रेजों ने मेसोपोटोमिया और दक्षिण फारिस पर अधिकार कर लिया जर्मनी मे कुछ दूतों को अफगानिस्ताम मे कर भसफाया भी था पर कुछ सफलता नहीं हुई। अन्त में अमीर एकाएक मार डाले गये और पीछे से पता लगा कि अफगानिस्तान से अंग्रओं का प्रभुत्व नष्ट करने ही को यह हत्या की गयी थी। अव सिब्बत की षात लीजिये जिसे अंग्रे झोंने दूसरी भारत फी ढाल बना रखा है। सन् १६०० सफ तिब्बत की तरफ किसी को ध्यान म था। म उस देश की जनसंख्या, रीतिरस्म आदि किसी को मालूम थे । तिग्वस के लोग न तो किसी विदेशो से व्यापार करना चाहते थे और न किसी को अपनी राजपानी लामा में हो पाने देना पसन्द करते थे। सन् १६०० में दलाई लामामे एक पत्र और कुछ भेट अस के क्षार के पास , भेजी। तब श्रमज वीकने हुये । साहोंने यह भी सुना कि सस का भी एक दूत सिम्बत में आ चुका है। अंग्रेजों को सन्देह हुआ कि कहीं इस इसी ममे मार्ग से तो भारत पहुँचाने का उपोग नहीं कर रहा है। चीन मी तिम्बत की इस पतन्त्रता से नाराज था। मन