पृष्ठ:२१ बनाम ३०.djvu/२४

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जस्य पैदा करना रहा है। आर्य और मार्य लोग एक साथ बस गये और उन्होंने स्वीकार किया कि प्रत्येक को अपनी सम्यता का अधिकार है और पारसियों की तरह बाहर से जो लोग माये उन्हें सामाजिक व्यवस्था में स्थान मिला । मुसख- मानों के माने से समतुल्यता में कुछ गपष्ट पैदा हुई किन्तु भारत में ससे पुनः ठोक करने का प्रपन फिया प्रोर यनुत कुछ सफलता मी दुई। हमारे दुर्भाग्य से हम मत भेद मिटामीनहीं पाये थे कि राजनातिक व्यवस्था टूट गयो, अंग्रेज़ प्रागये और हम गिर गये जैसे स्थायी समाज की स्थापना में भारत को मारो सफलता मिली थी वैसे ही एक सास वार में पह असफल रहा जिसके कारण उमका पतम हुआ और अयतक पददलित है। समानता का प्रश्न नहीं हल किया गया। माप्त मे नान बूझ कर इसकी उपेक्षा की भोर अपनी सामाशिफ व्यवस्था असमानता को मोष पर पदो को जिसका भयकर परिणाम हमारे सामने है कि करोडरों देशवासी भक्त समझ आमे लगे जो अमी कान तक दलित ये ओर उन्नति का उन्हें कुछ भी अवसर नहीं प्राप्त पा। गुलामी की बेड़ियां काटो। तो भो जिस समय युरोप में धर्मों के लिये युर, हो रहे और ईसाइ मत के यो फि ईसामसीह के माम,पर एक 2