पृष्ठ:२१ बनाम ३०.djvu/२४१

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तेरहवां अध्याय प्रजा-द्रोह राजद्रोह एक अत्यन्त प्राचीन भयर अपराध है। और जब से जगत में राज-सत्ता का जम्मा हुश्रा है । वष से इस अपराध में ऐसे ऐसे नर-य ठों को प्राणाम्सफ दरार दिये चुके हैं। जिन के विषय में मनुष्य समाज सदा अफसोस फरा रहेगा । पण्तु जिस प्रकार एक स्वेच्छाचारी राजा था सर का असंख्य अन समूह को अरुचिकर अधिकार न्याय । आधार पर वेध है और चाहे किन्हीं उचित कारयों के आधा पर भी रस का मन-वचम धीर धर्म से विरोध करना अपया है तब असंख्य नर-समूह के अधिकार और म्याओं का प्रचार और अमीति से हरण करना भी अवश्य उसी श्रेणी का अप राध मामा खाना चाहिये और यह अपराध मेरे शब्दों में मजाद्रोह है। भारस के शासन के सम्बन्ध में मैं ददता-पूर्यक, अपने सरकार पर यह अपराध लगाता है और मैं विश्वास रखता है कि सरकार सुधार के नाम पर जो कुछ करती रही के प्रति एक भयङ्कर पट्यन्त्र है। 10 1 वामता 4