पृष्ठ:२१ बनाम ३०.djvu/२४४

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कठोर मिबिन्त था पैसा आज नहीं है, जैसा पह घारमा था वैसा पेसामान नहीं है। प्राज यह पक दाहाकार से भरामा, ( २३७ ) । गहरी चाल चली है और असंख्य रुपयों को इस चाल के बारा परवीर में फतर क्षेती है और इसमे भारत की आर्थिक दय में अनहोनी क्षति पहुँची है । उस ने तरह २ के नियम, दल, पानगड और पहाने तथा धमकियां देकर निर्दयता-पूर्षक भारत की सम्पत्ति अन्धा धुंध लुटी है। उस मे युद्ध के समय भारत फो मसल कर, उस की शकि से पहुन थाहर घम जन को द्वारा लिया और शान्ति समा के म्याय में उसमे भारत को समस्त राष्ट्रों के सामने अपना मारा हुआ शिकार कहा । मारत की उचित सम्यता पूर्वक की गई मांगों के बदले पाशविक दंग से उस फा खून बहाया है, उसफो स्त्रियों की लाज लूटी है और अन्त में उसने साफ २ कर दिया है फि भारत हमेशा हमारा गुलाम रहेगा। पे सारो हरकसे जाम घूम कर की गई है। अंग्रेजों के प्राने से प्रयम मारत जैसा अराजक या वैसा ही आज भी है। जैसा प्रशिक्षित या प्रायः वैसा ही माम भी है-पर वैसा यह पनी या पैसा प्राज नहीं है जैसा यह व्यापारी था पैसा प्राम नही है । जैसा पह पोदा या पैसा प्राज महीं है। जैसा यह प्रयम्भक या पैसा आज नहीं है, जैसा यह पाने पीने से माम नहीं है, जैसा वह हिन्द था, जैसा यह मुसलनाम था