पृष्ठ:२१ बनाम ३०.djvu/२४५

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I 1 ( २३८ ) भूख से रोता हुआ नंगा ठिठुरता हुआ, अपमान से पिटता हुआ, सुश हुश्रा, भविष्य की आशाओं मे हीम अनाथ बातक के समान है। उस की यह दुर्दशा अंग्रेजी अनदारी में ही मुई है और उस की सारी जिम्मेदारी अग्रेजी सरकार पर है। तीस करोड़ मर नारियों से भरे हुए एक देश की इरादे पूर्वक उस सरकार ने यह दुर्दशा की है जो सदा यहकहती रही है कि हम भारत की रक्षा कर रहे हैं। जिस भूमि पर अमरजयध्वजा फहराही थी। जिस भूमि के दर्शन को पारम्यार देषात श्राते थे। जिस भूमि पर भरत, विक्रम, युधिष्ठिर और शालवाहन ने एफ चक्र गज्य किया । जिस भूमि की देवो दूसरे सष देशों की महारानी थो । यही आज लोह में भरी हुई निस्तेज धूल में पड़ी है | यह क्या भूल जामे योग्य है? यह पूर्व का र ग कहाँ गया ! यह पूर्व की समृद्धि की गई। यह प्रेम, यह शौर्य, वह युद्धरंग कहाँ गया । यह प्रानन्द कहां है। यह व्यापार की तेजी कहां है ? यह सचिदानन्द में मस्त मग्म पोगी महर्पि और युसमस्त राजपूत कहाँ हैं यह स्वतन्त्रता कहाँ गई ! स्वतन्त्रता, समानता और मित्रता के नियम कहाँ गये । यही सूर्य है वही वायु और आकाश है, वही ममुद्र का बहरे है पर यह भारत कहाँ है ? हाँ सुम्ही हमें लूट कर ले गये । हमारी पक्षपान सरफार T I