पृष्ठ:२१ बनाम ३०.djvu/२४६

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'उससे हम तुम्हें उमारेंगे। सत्य न्याय और अदन इम्साफ (२३६) की जाति पाती । साइब के अयाने में तुम लौ की नौकरी पर आन झोकते थे आज तुम किस जादू के पन से इतने अमीर हो गये। तुम्हारे घर में पह येशुमार दौलत कहां से समझाई और हमारे ठसाठस गरे हुए घर कैसे पाली हो गये। यह कान की बनिहारी है। हम तेजस्वी प्रार्य एन के दास इए जिन के पूर्वज जंगली थे। परन्तु मूर्ख के सिवा कोई अपने को अमर शहिषान् महीं कह सप्ता। यह महान् रोमम राज्य कहाँ है ? यह प्रतापी फुस्तुन्तुमिया का मुसाम कहाँ है । वह अमर्ती मारत पा राज्य कहाँ है! अन्त में सब का नाश है। यह च है। पहा है | तो चढ़ेगा यह गिरेगा। इम बढ़े थे हम गिर गये। सुम चढ़े हो तुम गिरोगे । हम गिरे हैं हम चढ़े ने उस दिन को तुम भयमीत हो कर देनो। तुममे पायदा किया था कि तुम्हारा देश दीन दशा में है 1 । याम वफरी एक घाटपर पानी पीयेंगे। देश की समृद्धि म्यापार, कता बढ़ायेंगे। शत्रु से रक्षा करेंगे व्यर्थ जस्म म होने देंगे। सो पर लगे हैं उठा लिये साधेगे। तुम्हारी महान योग्यता के सारे पायदे पूरे हो गये है देश को दीन दशा सथा उन्नत होकर पास्माम तक पहुंच चुकी है तुम्हारा सत्य, और अदल साफ, मन्दकुमारने, अमीचन्द ने, पजाब के पुत्र दिलीप सिंहने, झांसी की वीर