पृष्ठ:२१ बनाम ३०.djvu/२४९

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( २४२ ) धुन्धो राज्यशासन से देश का उद्धार नहीं किया। क्या हमने छापेमाने का अमूल्य प्रतुल्य स्वातन्त्रय तुम्हें नहीं सौंपा है ? क्या व्यापार धन्धों की बढ़ती नहीं की है। सती ठगी, बालहत्या, गर्भपात और वैसी ही कुरीतियों को क्या हमने नष्ट नहीं किया। एक प्रांत से दूसरे प्रांत में जान में कितने भय कितनी फठिनाईयां थीं, २० कोस जाने पर भी ज़िन्दगी की सलामती न था। उन से क्या हममे तुम्हें मुक महीं किया ? अाज कल क्या तुम पद्रिकाश्रम से सेतुबन्धु तक सोमा उधानते घेखटके नहीं आ सकते हो? ये रेल, तार. साक सडक और अमन भाराम क्या हमारे ही प्रताप का फल नहीं है ? क्या किमी पिण्डारी लुटेरे को मरा भी गड़बड़ करने पर दण्ट महीं होता है। प्राज मुगलों के झुक्ष्म और मराठों की लट कहाँ है ? क्या हमारे इन उपकारों को न मानोगे? हमने तुम्हें स्वाधीनता और अधिकार देकर साम्राज्य में सहायक महीं बनाया है" हाँ यह सब तुम ने किया है । पर किस सहस्य से। कि तुम पसके बदले में गहरा हाथ 'मारो। तुम हमें धर्म स्यतिम्त्रय देने की बात कहते हो पर अपमे धर्म पर तुम्हें खुव कुष भास्या महीं है तुम्हारा वास्तव में कोई धर्म हो नहीं है। सुम्हारे माघ धर्म को गये हैं । तुम म' को एक घ्यर्थ धोग ससम फर तुष्छ जानते हो। और भारत के विशाल