पृष्ठ:२१ बनाम ३०.djvu/२५०

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चे धालसी असावधान और अचल तभी तक उनको अग्रत। जरा भी पी चपन करने पर उन्हें पागल या माशा दैसियत तुम्हारे पमएठी पायसराय कर्मन मे दिल्ली दर में २४३ ) मैदान में पर्म के भगहों में पहले से तुम पुरते मी थे। इन मगरीक कठिन परिणामों से तुम सायधान थे। इसी से भर्ग में पाए म लगाई। मगर तुम में ग्राम धर्म को उत्तेजन दिया था । किस लिये मुम मे मिशमरियों को अपमा सगा समझा था! सुम्हारे राम्य में हिन्दू-लड़को को भोर मड़कियों को क्यों पाईविल अवरदस्सो पाई जाती है। इन सब बालों को हम सममाफिर दार्शनिक हिन्दुओं और कहर मुसलमानों को धर्म सिखाना हो खोर थो। तुम्हे और महर उठने का मय था । तुमने भार, मैसूर और ग्वालियर स्वतन्त्र फिये इस लिये कि इम टुकड़ों को रात का इस का मूमना वन्द करें । राज्य सपने के मसीजे सत्तापन के दिनों में भोग कर तुम्हारी अक्ल ठिकाने भागा थो । इन तुमय गयों का स्यार्थ त्याग फर तुम मे उम सभी राजाओ को पशी भूत फर लिया जो तुम से सतर्क रहते थे। और जो सतक रहते तो पड़ो विपत्ति थी फिर भी उन के राज्यासम तुम्हारे सिपाहियों की नंगी सलवार पर दा घरे हैं। उन्हें तुम ने मालसी, प्रसावधान और प्रधान बनाया है और जय सक यक कह कर गदी से उताप्ले सुम्हें के मिनट लगते हैं। सन की + 1 7