पृष्ठ:२१ बनाम ३०.djvu/२५१

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( २४४) अपने अदलो (१) बना कर प्रकट कर दी थी। उनके भाग्य अरक्षित हैं और सम्हें फूटते देर नहीं लगती है। सुम ने स्कूल खोल कर हमारे बच्चों को स्वदेश स्यधर्म और स्वजाति से थागी यमाया है-श्राज घे तुम्हारे से कपड़े पहन कर तुम्हारी सी बोली बोल कर "अमर विजय राज्य तपो, ब्रिटेन ! युटु उपाणा फरसे हैं । व्यापार की डींग हॉकते हुए लजित होना चाहिये । तुम्हारे सारे प्रमाणिकपन, सारे न्याय केटोग सारे सत्यताके स्वांग सिर्फ अपने ही व्यापार केलिये है। अपने ही व्यापारके लिये तुमने कला कौशल को नष्ट किया और कारीगरोंको किसान बनाया,अपने ही व्यापारके लिये सुमने रेल चार साफ पमाये, अपना ही व्यापार तुम इन से कर रहे हो-ये धिमाग ही कुछ छोटे व्यापार नहीं है। तुममे इस मसले में हमें उतनाही मना दिया है जैसे खोसका मिलोमा कोई वालक चार पैसे मैं मोज लेकर मजा पाठास रसीभर खार के बदले तुम मे क्या पाया है-पह बात क्यों छिपाते हो। छापे का स्वातन्त्रय । फैसी विडम्बना है। कितमे पत्र, किसनी पुस्तके कितने प्रेस यस हो गये । एक शब्द मुह से निकालमा कठिन है इस स्वतन्त्रता की हवा में हमारा दम घुट रहा है। तुम में सनी बात सुनने की शक्ति थी ही नहीं। तुम्हारे अस्पताल जिमके विषय में तुम्हें वसा अभिमान है और जिन्हें 'तुम अपने हाथ का एक पदा भारी पुएयकर्म