पृष्ठ:२१ बनाम ३०.djvu/२५४

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1 शान्ति का तुम्हारे सोने के लिये है । जुटेरे और मुगलों ने ( २४७ ) माओं के स्वत्यों और दायित्वों को कोइ म्यषस्या फरते तो एक बात होती । तुमने भूख के डर से मरने वालो को बोध कर गल दिया। अब यह जूझ पर न मर सको, तड़प २ कर यात्रणाप भोग २ कर, पाप का टोकरा सिर पर लाद कर मर ही है। विदेशियों | किस लिये तुम हमारी घर की सभ्यता में शव पड़े थे और किस लिये तुम उस का हम से समर्थन चाहते हो। बाल हत्या, गर्मपात परावर जारी है । सिर्फ रगडग बदल गया है । इस काम में तुम्हारा ज़हरीली दवाइयों भोर फासपाया डाक्टरों ने खूब यश कमाया है। सोमा उछालते चले जाने की बात कहकर क्यों हंसी उड़ाते हो । अम सोना हमारे पास छोटा कहां है । अब हमारे पास एक हाथ में सोमा था तो दूसरे हाथ में तलवारको मंठ मो थो, और कलाई में रसके योग्य पल भी था। उसकी बदौलत भवा रुपये के हीरे मोतो यस्त्र रेशम हुंगे पुओं का व्यवहार भएर अप से बनसा या । प्राश किसी के हाथ में सलवार महीं, ओर किसी के हाथ में सोना मीमहीं । तुमने "हम रक्षा करेंगे। कहकर तलषार छोन ली, और " हम रक्षित रक्मंगे" कह कर सोना छीन लिया । राकमोर ठग क्या लेने अब हमारे घर आयेगे । कंगो के घर पर क्या टाका.पड़ेगा! हम वो क्या माय ? क्या पी इस उधेड़बुन में लगे है। बाबा तुम्हारी 1