पृष्ठ:२१ बनाम ३०.djvu/२७

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

+ ! (१८) दूसरे का कतल करने में लगे हुए थे भारत उस समय सहिम्णु बना हुभा था यद्यपि दुख है कि आज वह सहिष्णु महीं है। कुछ धार्मिक स्वतंत्रता प्राप्त करके युरोप ने राजनीतिक स्वत । प्रता और राजनीतिक तथा कानूनी समानता के लिये प्रयल किया। यह सर्व प्राप्त करके भी यह देखता है कि आर्थिक स्व संत्रता और समानता के विमा इमका कुछ भी महत्व नहीं है। इसीसे आज पजनीतिका बहुत अर्थ नहीं रहा है और सबसे अधिक महत्व का प्रश्न सामाजिक और आर्थिक समानता का है। भारत को भी यह प्रश्न हल फरमा होगा जिसके शिला। उसकी राजमोतिका और समाजिक व्यवस्था स्थायो महीं बम सफठी । जरुरी नहीं कि यह प्रश्न किसी अन्य देश को सरह ही हल किया जाय । इसके स्थायिस्य के लिये आवश्यक है कि यह प्रश्न सो देश के निवासियों की बुधि के अनुसार हल हो. और इसी के विचार और सभ्यता के फलस्वरुप हो। अब यह इल हो जायगा तो मिन्न २ गातियों के गिन मतभेदों से हमें कष्ट झेलना पटता है और हमें स्वतंत्रता नहीं मिल पातो ये स्वयं ही मिट आयेंगे। वस्तुतः असलो मतभेद तो मिट चुके है, किन्तु एक दूसरे के प्रति भय, अविश्वास और सन्देह वमे हुए हैं गो भागों के बीण पोते हैं। हमारे सामने मतमेदी को मिटाने का प्रश्न नहीं है। साथ साथ बने रह सकते हैं। मरन यह है कि भय और सम्देह कैसे मिटाया गाय और