पृष्ठ:२१ बनाम ३०.djvu/२७९

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

] ( २६) पार्सत की सन्धि के अनुसार जर्मनी को एशिया में केवल अपने अधिकृत प्रदेश ही नहीं छोड़ने पड़े, वहिके सारे एशिया प्रान्त में व्यापार या धर्म प्रचार करने का अधिकार भी स्यागना पड़ा। रूस जापान युद्ध मे तथा जापान के महा युद्ध में शरीक होने मे यूरोप की दृष्टि ऐशिया को तरफ बदल दी। इन दो घटनाओं ने मानो यूरोप को चुनौती देगली है । जापान का इन कामों से अन्तिम उद्देश्य यह था कि ऐशिया में यूरोप का कुछ भी महत्व न रह जाय। जापाम को इस प्रकार विजयी होते देख ऐशिया को जातियों में राष्ट्रीयता के भाव उत्पन्न होगये और तरुण मिभियौ, तरुण फारसियो, तरुण भारतियों, तरुण स्यामियों, और तरुण चीनियों में फाहिरा और कस्तुन्तुमिया में बदेषिया भौर पोकन तक उन्हें फैला दिया।ऐशिया केवल ऐशिया के लिए रहे यही सब की पफ सामूहिक इच्छा होगई है। ऐशिया से जर्मनी को निकाल बाहर करने में आपाम जो मुठ मी दिसाई एससे भले ही मित्र राष्ट्र प्रसन्न हुए हो- 3 परन्तु यास्तव में यूपेप को एशिया से खदेड़ने का पह उपक्रम है। मि० एन-चटिस मे अपनी पुस्तक-दो-प्रामम् ओफ़ दी फामन पेरुथ में लिखा था- में 1 1