पृष्ठ:२१ बनाम ३०.djvu/२८३

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7 ( २७२ ) प्रकार के स्नेह सम्बन्ध नहीं स्थापित किये हैं। तथापि दिन प्रति दिन पौर्वात्य देशों में एफ होमे की भावना जागृत हो रही है यह मिः सम्देह पण निर्विवाद है। गत कुछ शताब्दियों में युरोप सौर में भौतिक सुधार, सुधार के शिखर पर जा पहुचे हैं। परन्तु पौर्वात्य-देश बर्षा के तहां ही बड़े मुए है। ऊपर २ से देखने वालों को पाश्चात्य सुधार, पौर्वात्य सुधारों की अपेक्षा श्रेष्ट मालुम होते है सही पर पाश्चात्य सुधा का सवा स्वरूप खुला करके दिखा दिया कि हम लोगों को क्या प्रतीत होता है। शास्त्रों की और देखने पर विणेप जोर दिया गया है, ऐसा देख परता है । यह उपयुक्तता मानवी समाज के साथ लगादो कि उसका सहग्य आधि पौतिक उन्नति की ओर देस पड़ता है। विमान, बम और मशीन गम्स ( यांत्रिक वो ) वगैरह सब प्रकार जबर दस्ती के सुधार के हैं । युरोप के इस सुधार के कारण ही घे हम लोगों दास्य-गुलामी में रख सकते हैं और इसी से हो दम लोग के भी हमारी उन्नति नहीं कर सकते। हम पूर्वीय हमेशा-'जधर दस्स का ठेगा सिर पर'स ध्येय का तिरस्कार किया करते हैं । हमारे सुधार उनके सुधारों से श्रेष्ठ है! हमारे सुधारों का सार है पुण्य और पयेपकार ! पूर्व के देशो का अध्ययन करने वाले पाश्चिमात्य विद्वानों ने स्वीकार किया है कि हमारे ही प्राधिमौतिक सुधार उनसे कमजोर हैं,