पृष्ठ:२१ बनाम ३०.djvu/२९

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1 (२०) से हो सकती है। हमें याद रहे कि आज संसाप्रायः सर्वत्र बहुत ही अल्पस ख्यफ लोगोंके हायमें शक्ति और पर है और पड़े बहुपक्ष पर उन्हीं का प्राधान्य है। $ 1 हठधर्मी का अन्त करो। मैं धम में इठ और पक्षपात महीं पसन्द करता और मुझे इप है कि ये कमजोर हो रहे हैं । म मैं साम्प्रदायिकता को ही फिसो रूपमें पसन्द करता है। मैं यह नहीं समझ सफसा कि राजनोसिफ या आर्थिक अधिकारों का दारमदार किसी मज़ हर या जाति की मेम्बरी के ऊपर क्यों हो। यह तो मैं अच्छो तरह समझ सफसा हूँ कि धर्म और सम्यता में प्रत्येक को स्व- सन्नता का अधिकार है ।खासकर मारतमै तो जिसने सदा इन अधिकारों को स्वीकार किया और दिया है, इनको बनाये रखने में कोई कठिनाई ही न होनी चाहिए। हमें तो केवल ऐसा रास्ता टूर मिकालमा है जिससे इस भय पोर अविश्वास का मुलोच्छेव हो सके जिसने हमारे सामने अन्धकार सरा कर रखा है। एक पराधीन जाति की राजनीति बहुत अंशों में भय भोर घृणा के आधार पर होती है और हम काफी से ज्यादा समय तक गुलामी में रहे हैं जिससे सहज ही छुटकारा नहीं पा सकते । मैं जम्मसे हिन्दू है, पर महीं जानता कि मेरा अपने को हिंदू कहना या हिन्दूओं को ओरसे बोलमा फहाँतफ उचित 3