पृष्ठ:२१ बनाम ३०.djvu/३३५

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

( ३१६ ) मिस्सन्देह सरकार की सलवार व्यर्थ होगी। जो लोग सरते हैं घे समझ है। हम अपने लड़कों को सरकारी स्कूलों में नहीं पढ़ते, किसी का क्या इजारा है। कोई ऐसा कानून महीं है फिन पदनेवाले को सजा मिले। हम कौन्सिल को मैम्बरी छोरते हैं, स्मिताष नहीं चाहते, कोई जुर्म नहीं। मरकारी माल का व्यापार नहीं करते । डाक, तार, रेल में न नौकरी करते म उससे काम लेते हैं। अदालत में नहीं जाते, घर में फैसला फरते है और कोई ले जाय तो अपना बचाव नहीं करते। भेज दो जेल यस यही न पात है। देने जेल में फितमी जगह है। स्वदेशो यस्तु प्रहण करना कोई कानूनन जुर्म नहीं है। टैक्स न देने और कानून न मानमे से फांसी नहीं लग सकती है। सेल, फुर्फी है सो पास को तलवार है-सरकारी हिम्मत हो तो उन्हें लेकर लड़े। १-असफल होते का भीपण परिणाम । प्रत्येक मारत के बच्चे को पह मान रखना चाहिये। कि यदि हमारा स्याघानता का आम्दोलन असफल हुभा तो भारत की खैर नहीं है भारत का उठता हुमा मस्तक मुरी तरह कुचन 'दिया जायगा और भारत का प्रत्येक जीव-चाहेषहस्थधीमता का भक हो पा वियेषी-निश्वय विपद में पड़ेगा। यह बात तो होना को सरह भरल है कि मारत अब सत्काल स्वावलम्बन लेगा और यह सम्भव है कि कोई गैर माति