पृष्ठ:२१ बनाम ३०.djvu/३३६

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( ३१७ ) मारत की मममानी मालिफापन कर रहे। स्वाधीनता कीच्याप्त जिस जाति को लग जाती है यह लोह तक पोसो है मारत मे अपनी प्यास सतोगुणो मन से अब तफ घुमाई है और हम के लिये भारत गाम्धी का भणी है। परन्तु यदि किसो भी कारण से यह सतोगुणी जलका स्तोत्र बन्द हो गया या हम ही इस मार्ग से भटफ गये तो याद रखना चाहिये भारत में पचासो यर्ष तक खून की नदियां बहँगो और तव न्याय, अन्याय, कानूम, नीति सप अवल पाठाल में हर आयेंगे । यह काम हमारे और हमारे विरोधी दोनो के लिये प्रासदायक होगा। भारतवर्ष प्रभो तफ शायद अंग्रेजों की दपि में गुलाम- परपीक-लोगों से भरा हुआ देश है। इससे प्रमो वहाँ यहो घरचा वम रही है कि भारत को दमामा चाहिये, अराजक्सा मिटानी चाहिये । परन्तु जब अंग्रेजों को पह पता लगेगा कि पास्मय में भारत वीर है, निर्मय है घोर अपमे स्वस्थ के लिये सर्वस्य दोम देने के तैयार है तय उसी हाउस आफ साइंस में घड़ने से यह कहा जायगा कि "इगोन्ध भारत को अपने साम्राज्य में मिक्षाये रखने के लिए भारी से मारी लड़ाई खड़ेगा और अपनी पूरी २ शक्ति लगा देगा। महा-मनस्थी भीम-पितामह ने एफ पार युधिष्ठिर से कदा था कि-बटा सोने के एक से सत्य का मुह पद है।" }