पृष्ठ:२१ बनाम ३०.djvu/३३७

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३१८) 1 यह बात इतनी सच्ची थो कि मनुष्य अव तक अपने जीवन में उसे आजमा सकता है। सत्य पात तो यह है कि प्रत्येक समाज पर न्याय का शासन होना चाहिये और प्रत्येक प्रजा को न्याय भक्त होने की शपथ लेनो चाहिये । और न्याय की मर्यादा तोड़मा दपरमीय ठहरना चाहिये । परन्तु अय राजा काशासन होता है, रामभक होने की शपथ ली जाती है, राजा के प्रति अवज्ञा करना पण्ड- नीय है चाहे राजा की नीति और प्राचार कैसाही फुत्सित पयों न हो। हम समस्त अंग्रेज जाति से, घरम समस्त मानव समाज से एक प्रश्न करते हैं कि धर्म की दृष्टि से मनुम्य के प्रति और -समाज का समाज के प्रति कर्तव्य क्या है। जिस समय भारत में अंग्रेज व्यापार करने आये थे और 'घटना फ्रम से शासन के अधिकार उमके हाय में भाने लगे तब उन्होंने यह घोपणा की थी कि हम लुटेरे, स्वार्थी और योग्य हाथों से एक निराश्रित जाति की रक्षा करने का पवित्र उद्योग करते हैं। परन्तु आज पदी अंग्रेज भारत को अपमो सम्पत्ति किस लिये समझते हैं। यह बात सोचने की है। फापना करिये कि कोई सजन दया फरके किसी अनाथ बालक का रक्षण करे तो उसका यह कार्य प्रशंसा की दृष्टि से देखा जायगा फि उसने सबा मामय धर्म पालन किया। किन्तु पालक प्रमाण