पृष्ठ:२१ बनाम ३०.djvu/३३९

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1 ( ३२२ ) उसे पोषण कराना चाहती है, हमारे लिये अब अन्धविश्वास, मकि और श्राघोमता प्रसम्मघ है तष परिणाम केवल एक है। युद्ध, अब मेल हो नहीं सकता उसके मार्ग पर है। मेल होने के दो ही मार्ग है-या तो निटिय गवर्नमेंट अपना सर्यस्थ नाश कर भिखारी बनने को तय्यार हो जाय और या हम पूरे २ पैगैरत और तुच्छ बन कर सिर मुका है। मेरी समझ में दोनों असम्भव है। गवर्नमेंट का राज़ी से सर्वस्व देमा असम्भव है। मगरमच्छ को निगल गया है यह वस्तु विमा पेट चीरे निकल ही नहीं सकती। और देश की जो दशा हम देख रहे हैं-उसका जैसा उत्याम हो रहा है-उसे देखते पेश सिर झुकायेगा यह भी समझ में नहीं पाताहर सूरत में युद्ध हो अवश्यभाषी है। ऐसी पशा में हमारा यह धर्म है, पक्कि संकट फाल का फर्सष्य है कि सप स्वार्थ-सब प्रलोभम-सब दुर्वलताये-सव पे, ई, फर भूलकर एक मन, एफ घचम, एक प्राण से इस युर में जूझ मरें।दिगम्त को कम्पायमान करती हुई हमारीमा- पाजे निकले-“कार्य वा साधयामः शरीर धा पातयामः।" ईश्वर हमें क्रोध, हिंसा, हत्या, देप, नीयता और पाप से पवावे । हमें विनय दे, धैर्य दे, साहस दे, और मार्ग दे ।