पृष्ठ:२१ बनाम ३०.djvu/३९

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1 1 ( २ ) ही के लिये लगातो चाहिये । हम भारत को पूर्ण से पूर्व स्वतन्त्रता चाहते है। इस काग्रेस मे न वो यह स्योकार किया, है और न करेगी कि ब्रिटिश पामिंटकों हमें प्रामा देनेका कोर हफा है। हम उस से कोई अपील महीं करते । हम संसार की पालिमेंट और अम्त करण से अपील करते हैं और कहते हैं कि मारत अब ओर अधिक विदेशो भाधिपस्य नहीं स्वीकार करता। आज या फल मले हो हम अपनी इच्छा की पूर्ति के लिये काफी समर्थ न हों। हमें अपनी कमज़ोरो मालूम है और हम अपने बल का अमिमान नहीं करते । लेकिन हमारे दृढ़ निश्चय की ग्यक्ति के बारे में कोई और कम से कम दंगर तो भूल न करे मोर इसे फम न समझे।मैं भाशा करता हूँ कि गम्मोरता पूर्वक इस के परिणामों को भलो मांति समझाकर हम यह स कम्प करेंगे जिस से फिर पोछे पग न हटायेगे। एक बार फस्स फाप होमे पर कोई महान् राष्ट्र अधिक समय तक नहीं रोका मा सकता। अगर पाम हम सफल नहीं होते और कलंगो महाँ होते तो उस के वार सफलता का दिन जरूर पायेगा । हम झगड़ों से थक चुके हैं ओर शान्ति के मने है। हमारे पोर युषफ लोषारी वले पर जेल जाते और हमारे प्रमजीवी लाचार होकर ही हडताल करके मनो मरमा स्वीकार करते हैं। सम्मानपूर्ण समझौते का मार्ग म होने से ही हमें राष्ट्रीय झगड़े कासकट पूर्ण रास्ता पकड़ना पड़ता है। इस शान्ति के