पृष्ठ:२१ बनाम ३०.djvu/४०

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(28)। इच्छुक हैं और मित्रता का हाथ सदा पढ़ाने को तैयार अगर कोई उसे पकरमा चाहे.तो। पर सस हाथ के पोछे ऐसा शरीर होगा जो अन्याय के सामने म मुकेगा और ऐसा दिमाग होगा, सो किसी प्रावश्यक बात में प्रारमसर्पण न करेगा। यह समय भाषी शासन-विधान निश्चय करने का नहीं है। वो घर्ष से अधिक समय से हम यही कर रहे थे और अन्त में सर्वदल सम्मेलन मे एफ स्कोम तैयार भी की थी जिसे कांग्रेस मे एक वर्ष के वास्ते स्वीकार किया था। उस से भारत को लाग ही मुश्रा है। पर वर्ष बीत चुका इस लिये अव नइ अष- स्थानों से सामना करना है जिस के लिये कार्य करने की जरूरत है, शासन विधान बनाने की नहीं। हमें सामाजिक ध्ययस्था और समतुल्यता स्थापित करने को मोर ध्यान देना होगा ठया उन शक्तियों को काबू में करना होगा जो भारत के लिये विषयत् धीं। साम्यवाद और प्रजातन्त्र मैं यह स्पट शब्दों में करेगा कि मैं साम्यवादो और प्रजातन्त्रघावो हूँ और बादशाहो तथा राजामों से या ऐसी व्यवस्था में मेरा विश्वास नहीं है, को बड़े बड़े कारनामों के मालिकों को पैदा करती है जिनका मनुयर्यों के जान माल पर राजाओं से भी अधिक अधिकार होता है। तो भी मैं 1 1 i