पृष्ठ:२१ बनाम ३०.djvu/४१

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(३०) 1 समझता हूँ कि जिस तरह को राष्ट्रीय सस्था यह कांग्रेस है देश की पर्समान अवस्था में इस के लिए साम्यवाद का पूरा कार्यक्रम स्वीकार करना शायद सम्भव न हो पर हमें यह भी समझना चाहिये कि ससार भर के समाज के भीतर साम्यवाद धोरे घोरे करके व्याप्त हो गया है और प्रम विवादात्मक प्रश्न केवल यह है कि उसको पूर्णरूप से प्रचलित किन उपायों से और कितनी तेजी से कर सकते है। अगर भारत को अपनी दरिद्रता और असमानता का अन्त करना हैतोसे भी उसी रास्ते से जाना होगा भले ही यह अपने उपाय ही काम में लाये और श्रादर्श को अपनो जाति,की। बुद्धि के उपयुक बना ले। देशी राज्यों की प्रजा के अधिकार हमारे साममे तीन मुख्य समस्याए है-अपसंख्यक मातियां, देशी राज्य और मजूर तथा किसाम । प्रथम के विषय में मैं विचार कर चुका है। यहाँ केवल यहो फिर कहूँगा कि हमें अपने शब्दों और कामों से उन्हें पूर्ण रूप से यह विश्वास करा देना होगा कि उन की सभ्यता और परम्परा सुरक्षित रहेगी। देशी राज्य पिछले युग के अत्यन्त अदभुत चिन्ह हैं। इस के कितने ही शासक अब भी अपने को ईश्वर के प्रतिनिधि सम झते हैं। चाहे ये दूसरों के हाथ कठपुतले हो क्यों न हो । ये > T4