पृष्ठ:२१ बनाम ३०.djvu/४२

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समझते हैं कि राज्य और राज्य को सारी वस्तुप अपनो हैं। जिन्हें मनमाने तौर पर उठा सकते हैं। इन में से एक दो अपमो ज़िम्मेदारी समझते और अपनी प्रजा को सेवा करने का प्रयल करते है, पाको वो सब पैसे दो हैं । उनको दोष देना शायद अन्याय होगा क्योंकि पेपित पदसि फी सपज हैं इस लिये यह पसति ही मिटनी चाहिये । एक राजा ने हम से साफ कह दिया है कि भारत और इग्लैंस में युस विरे तो यह इ ग्लैड के पक्ष में होकर प्रपनो मावमि के विरुव लड़ेगा। पही उसको देशभक्ति है। तब इसमें माश्वर्य क्या पदि राजा यह दावा करते और विटिश गवर्ममेंट इसे स्योकार करतो है कि एकमात्र बेहो किसी कॉम्स में अपनी प्रजा का प्रतिनिधित्व कर सकते और उनकी प्रज्ञा के किसी प्रादमी को कुछ करने का अधिकार महीं है। भारत के देशी राज्य शेष भारत से अलग नहीं इसकते इसलिये उन्हें मो सन्हीं की राह जाना होगा जो ऐसाही सोचा करते थे।राज्यों के भविष्य का निश्चय पफ मात्र उम के प्रभाजन ही कर सकते हैं मिन में रामा मो शामिल हों। स्वमाग्य निर्णयका दावा करने वालो यह कांग्रेस देशो राज्यों के प्रशाजमों को अधिकार देने से मकार नहीं कर सकतो । काँग्रेस से बात करने को जो तैयार हो ऐसे देशो राजाभों से बात करने और ऐसा रास्से सोचने को यह बिस्कुल सेयार है जिस से परिसम एकाएक ही मो। 1 7