पृष्ठ:२१ बनाम ३०.djvu/४५

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1 ( ३४ ) श्रार्थिक कार्यक्रम पेसा हो जो मनुष्य को धन की बलि चढ़ाने घाला न हो । अगर फोर कारवार अपने मजूरों को मनो मारे बिना नहीं चल सकता तो वह अवश्य वन्द होना चाहिये। अगर खेती में काम करने यालो को काफो खाना नहीं मिलता तोबीच के घे लोग न रहने चाहिये जो उन्हें खामे से वञ्चित करते हैं। खेत या फारस्तानों में काम करने वाले को कम से कम इतनो मजूरी पाने का हक है कि यह साधारणतः आराम से रह सके। सर्वदल कमेटो मे स्वीकार किया है कि कितने घराठे काम करने से धमजोयो का धन न टूटेगा । आशा है कि कांस भी धैसा हो करेगो । इस के सिवा यह मजूरों के अच्छे जीवन की सुप्रसिय माँगे भी स्वीकार करे और उन लोगों का संगठन होने में सघ तरह से सहायता दे । पर उद्योग धन्धों के मजूर तो भारत के एक बहुत छोटे अंग है। सय से अधिक तो किसाम हैं जो कि घाण के लिये रोप्हे हैं। हमारे कार्य क्रम में उन की यर्तमान अवस्था से उदार का अपम्प अवश्य होना चाहिये । यसमान कानूनों और लगान के यतमाम प्राधार में परिपतन होने से हा धास्तव में उनको रक्षा हो सकती है। हमारे योच बहुत से जमींदार हैं जो यो से में। पर उन्हें यह अवश्य समझना चाहिये कि परा यो जमींदारियों की पति संसार से परी शोधता से उठो बा रही है । पूजीपतियों के देश में भी बड़ी रियासतों के टुकड़े T