पृष्ठ:२१ बनाम ३०.djvu/५८

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

6 (४५) छिपी हुई मायना न तो वातावरण को देख कर और न प्रम- पित होकर उत्पन्न हुई है, प्रत्युत् यह चिर प्रमिलापित भावना है। इस भाषण के प्रभाव से प्रायेदन फारिणो समा जो सन- मुच आज समस्त भारत की जातियों की प्रतिनिधि सभा है फ्रान्ति काशिणीवन गई है। प्रार्थना और अनुमय के क्षेत्र से निकल कर काँग्रेस ने स्थायलम्बन क्षेत्र में प्रमश किया है। जयाहरनालजो के शब्दों में यह खुलम खुल्ला पश्यन्त्र करने का इरादा कर चुकी है। पण्डित जवाहर लाल जी के भाषण में यदि कुछ पुरानी चीज है तो यह अहिंसा और असहयोग है इसे खोड़ कर प्राचीन कांग्रेस को शद्वावालि तफ का उन्होंने स्यागम कर दिया है। ध्यान से देखने की बात सो यह है कि इस भापण में चर्या और मदर का जिक्र भी नहीं है, हम अहाँ तक खयाल फर सकते हैं सन् २१ के पाद यह प्रथम ही वार महात्मा गान्धी के इस जोयन प्राण पस्तु पर अपहलमा की गई है। परन्तु, इन दोनों प्रधान वस्तुओं की अवहेलना करने पर भी अहिंसा और असहयोग को पूरो मजबूती से पकड़ा गया है, असहयोग तो एक मात्र मषिप्य स प्राम की नीति ही है। परन्तु अहिंसा का समावेश मामो महात्मा जो के उस प्रमोष प्रभाष से मूर्छित होकर किया गया है जिसमें पापसयय की गाड़ो पर साधारण घम उत्पात के लिये वेद प्रकाशन करणे