पृष्ठ:२१ बनाम ३०.djvu/६०

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40 अयाहरलाल नेहरू इस भाषण में इतने अधिक स्पष्ट हो गये है कि उसमें राजमातिसौ का पालिसी का जरा भी गुंजाइश नहीं रह गई है। प्रायः समो ज्वलन्त विषयों पर विरकुल साफ पिचार प्रकट कर दिये हैं। इस स्पष्ट वादिता ने इसमें कोई सन्देश नहीं कि देश को बहुत साहस दिया है और देश पाइसराय तथा भारत मन्त्री फी सारहीन पोपणामों ओर धकम्यों से ऊब गया है इसके सिवा मदारमा गान्धो मे अपने पत्र मुख से स्वाघोनता की घोपणा की है। भहिसा के प्रश्न पर जैसा कि हम कह मुके हैं घे मदारमा के अमोघ प्रमाप में मूर्षित हो गये हैं-परन्तु उनका अन्तर्गत भाधना तो वहाँ भी भालक गई है, जब ये कहते है कि अगर हम हिंसात्मक उपाय काम में महीं लाते तो इसी लिये कि उससे कोई सात्विक परिणाम पिकलने की प्राशा नहीं है। किन्तु यदि पह कांप्रेस था राष्ट्र मागे घनफर किसी ममय इस नतीने पर पहुंचे कि हिंसात्मक उपायों से हम अपनी गुलामो से छुटकारा पा जायेगे तो मुझे इसमें कुछ भी सन्देह नहीं कि पह उसे स्योकार परेगी भार एस मयामक सत्य की पुष्टि में घे एक हा प्रकाट्य बात कहते हैं फि हिसा पुरा है, पर गुलामी इससे भी घुरोहै। स्वाधीमता की अपनी इच्छा प्रकट करने पर 40 अवाहर लाल मेहरू मे जिस कार्यक्रम की तरफ इशारा किया है। यह