पृष्ठ:२१ बनाम ३०.djvu/६४

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a तीसरा अध्याय गान्धी का बल महात्मा गान्धी हो प्राज पक ऐसी विभूति है जिसके आधार पर हम कुछ प्राश्यासित हो सकते हैं और ब्रिटेन की ता मयमोत हो सकता है। हम महारा गाम्बी के वल को वश्य ही अपनो विचार धारा पर सोलना चाहते हैं। महात्मा गान्धी ज्याला मुस्खो पर्वत है। वह प्रशान्त और अचल स्यैर्य, पर्व अप्रतिम साहिष्णुता जिस पर प्रमा स दी देखने माले को दृष्टि पर आती है। एक ओर यस्तु है स छोटे से मुख से निकलती दुई ज्योतिर्मयी ली उस के भीतर घिकती हुई मीपण महाग्नि समुन्द्र को बौछार है। जो पाताल क गहरा है और यह चाहे जप माफाश तक पा उठ आयगा। महात्मा गान्धी वोसी शगदि को पोड़ाभों का विकाश । पह विश्व मर के पोशित जोयो के विश्वास पोति है। हि जगत के पाय का अवतार है। मोर पह कदाबित हमारा गरत का भविष्य काल का प्रारब्ध है। 1 3 1 -