पृष्ठ:२१ बनाम ३०.djvu/७०

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गात बही अनुत दोस रही है। यह यह है कि महात्मा गान्धी मे स्वयं महारयो का स्थान प्रहण न कर सारथी का स्थान ग्रहण किया है। जब हम इस बात का स्मणं करते हैं कि महा वीर प्रजुन के सारथा पन कर महा पुरुष कृष्ण ने बडी मारी मीति खेली थी सप हम इस छिपे भेद को कौतूहल से देखने को इच्छा करते हैं । क्या सच मुच महात्मा गान्धी ने को तरह जान बूझ कर जवाहर लाल नहरू को मदारपी पद देकर स्वयं सारया का स्थाम प्रहण किया है। और क्या वे उसी गम्भोणा से युवक योगा के मैतिक पथ प्रदर्शक वनंगे जैसे कि प्रणा दमे थे। परन्तु मैं फिर कहता है कि देश महात्मा जी के साथ नो नहीं और उनके साथ घलमे के पोग्य भी नहीं। मैं इस बात से सो इन्कार हा नहीं करता कि देश बहुत भागे पड़ा है भोग उसका भेय महात्मा जी को है परातु मैं इस पात को समझ हो नहीं सकता कि महात्मा जी मे पूर्ण स्वाधीनता की घोषणा किस पक्ष पर की है। परमात नहीं कि महात्मा जी वस्तुस्थिति से धोखा खा गये हों, उनके ये शब्द कि "इससे मागे एक कदम मी बड़े वि बन्दक में गिरे" असाधारण है। ये शब्द उन्होंने सुमास वायु के समाम सरकार बमाने के सयोभन केत्तर में कहे ये । इनका यह मतलब है कि सम्होंने मो शम्द योजना की घह थोथी शब्द योजनाही महीं है