पृष्ठ:२१ बनाम ३०.djvu/७३

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( ५८ ) 5 घे उसके एक एक अक्षर पर कदम उठा कर बनना चाहते हैं और अपने प्रापेक शब्द को जिम्मेवार समझते हैं। यद्यपि जो कुछ फरमा विचारा गया है-अमी बहुत परिमित है, और महान् लक्ष्य को 'टेशते-नगण्य है पर मैं इसे प्रबल साहम का काम समझगा। यह बात विचारने के योग्य है कि महात्मा ने पारसगय पर बम कागर का प्रस्ताव जनता से वन्नपूर्वक पास कराया है, उस का उद्देश्य कांग्रेस की नीति को अहिंसा से न मुम्ने देना ही है परन्तु उन लोगों को माषना को ओर भा तो विचार करना चाहिये जो देश के लिये अमा इसो समय प्राणों की आहुति देने को तैयार हैं और जिनमें महात्मा जो के प्रति प्रणावर भाष होमे पर भा-उनके धर्य की प्रसीक्षा करने को सहनशीलता नहीं है। ये किस मोति से वश में रह सकेंगे। काग्रेस को मिन्दा को उन्हें परषा'महीं। घे जीवन भोर मृत्यु में मोह नहीं रमते, ये हृदय में धधकतो ज्याला से जल रहे थे ऐश को गुलाम देव महीं सकते ऐसे वार पुरुप-वेश का उसार करें या न करे --पर देश पर मारो विपत खाने के निम्मेदार तो अयश्प हो होंगे। यह मैं इस लिये कहता है कि उन्हीं के कारण सरकार को दमन का अधिकार हो जायगा और महात्मा गाम्बोमो यह चाहते है कि अपनी सम्मोहमी विद्या से सरकार फो दमन नोति को सम्ध करदे-जिस का कि उन्हें पूर्ण ]