( ६० ) 1 . 2 1 1 'पार्लियामेन्ट में साफ २ कुछ दिन प्रयम कहा था कि भारत को इस राजनीतिक जागृती के का गम्भीर कारण हैं 777 जैसे युझके धादको महंगाई, टंकी को सन्धि शर्त, व्यापार की दशा और पन्नाथ की हत्या और टालमटून की नीति आदि । मैं प्रत्येक समझदार आदमी से इस बात पर ध्यान देने को अपील करूगा- । किसो स्वराज्य को लहर स्वीय लोकमान्य के शम्दों में "हमारा जन्मसिद्ध अधिकार" के माम से कई वर्ष प्रथम से भारत के नाम से बह रहा थी, सूरत की कांग्रेस में जब कि महात्मा गान्धी मायद भारत में नहीं थे तब जिस लहर का एक तफाम देखने में आया था और लहर के चकर में बोर लाला लाजपतराय, अजीतसिंह और कई धुरन्धर-मस्तक वालों पर बजपात हुआ था। जिस जहर को रौ में मो तपस्वी अरविन्द को व्यर्थ पाहमा दी गई-जिसालहर की झपट में सैकड़ों पी० ऐ०, एम० २० मारतियों में चक्का पीसी; काले पानी में कोन चलाएं, काल कोठरी में दशवर्ष काटे, पागल हुवे, फासो पाई उस लहर को सण उदार सजन देशभक्ति या देशोन्माद कहेगा, यदि सरकार इसे “विद्रोह" मी कहे तो उस "विद्रोह" के उत्पादक सञ्चालकाया समर्थक महात्मा गान्धी नहीं है और हरगिज़ नहीं है।' )