पृष्ठ:२१ बनाम ३०.djvu/७६

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गढ़ता, विश्वास, प्रेम, और स्याधीनता के इच्छुक है म उन्हें अंग्रेजों से ऐप, न हि मुसलमानों से प्रेम, वे दुर्बलों के साथी और नमी और बलवान को हैं। मि० सी० एच० हारफूट नामके किसी अंग्रेज़ विद्वानमे 'डेली एक्समस' पत्र में महात्मा गान्धी भोर भारतीय वस्त्र व्यवसाय के बारे में गक मजेदार लेख लिखा था-उसका कुछ अंश यों है। "लका शायर स छ हजार माल के फासल पर बैठा हुआ एक मायाधी अपन चलें की परघराहट और करयों की ठकठकाइट द्वारा अपन जा मन्त्र का प्रयोग कर रहा है। यह करघे और माँ अपमे कामों में लगे रह कर उस शिरुर प्रधान देश के मावा ऐश्षय की सूचना प्रदान कर रहे हैं। उस पुरुष की प्राकृति प्रचलिस मायायियों की सी महीं है। इस माट कद के साम्रवर्ण दुबले-पतले मनुष्य की यह घुटनों से कमर तक साधारण मोट घस्त्र ते ढंका रहती है। उसके मुहुए सिरके मध्यभाग में कुछ बड़े-बमे बाल और भागे के दांत टूटे हुए है। छोटी म्छे उसे छिपाये रहती है। उसके काम बड़े बड़े और पद है दोनों प्रोग्य छोटा है किन्तु उनसे बुद्धिमत्ता टपकती है। उसकी गदन छोटो है। एक तरफ का काया इतना अस्यामाषिक करसे ऊचा उठा कि उसे