पृष्ठ:२१ बनाम ३०.djvu/७७

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

( ६२ ) एक बार उन्हों मे साफ कह दिया था- कि मेरा ध्रुव देश में अहिंसा का प्रचार करमा है और सब उनसे पूछा गया कि कदानित अहिंसा से देश को स्या चीनता नहीं मिले हिंसा से मिले और पेश हिंसा से स्वाधी नता लेने का अपनी योग्यता प्रमाणित फरदे तभी क्या आप अहिंसा के हो पक्ष में रहेंगे-तब भी इस सव्धे महात्मा मे यही जवाव दिया कि सय में देश-त्यागी बन गा । उत्तर के पहाटी में चपनाप जीधन के दिन काट दूगा। पर. हिंसा से यदि स्वर्ग भी मिलेगा तो उसका खेना एक और रस ममर्थन भीम फरूगा। ये उद्गार एक गम्भीर सत्य पर प्रकाश मालते हैं प्रथम तो यह कि महात्मा जी सुमीता यादी नहीं है, नीति वादी हैं उन्हें अपने गहरे से गहरे जोखिम के कामों का भी कुछ बदला म्ययं नहीं चाहियेयह केवल प्रत्या चार और सप्ताओं के बलात्कार को नापसन्द करने वाले और उस भनीती पर मर मिटने वाले व्यकि है, वह सार्य-भौमप्रेम चाहते हैं जहां बलवान और मिर्वल अपने वश फोम आजमाये, अहाँ स्नेह के पन्धन में बम्धे वजधान कमज़ोरों की रक्षा में मरे, जैसे प्रत्येक मई प्रवक्षा स्त्रियों की रक्षा को मरता है ये मनुष्य समाज को पशु समाज की तरह बलवानों को बजनीति से स्पमाषिक प्रणा फरते हैं फमज़ोरों को बलबाम मार कर पा जायें यह उन्हें सद्य नहीं है ये मनुष्य समाज में प्रानन्द,