पृष्ठ:२१ बनाम ३०.djvu/७८

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3 ( 44 ) से ही प्राप्त होगा। भारत को अगर जीवित रहना है तो उसे अवश्य ही स्वराज्य प्राप्त फरमा होगा । भाई लोग, हम साड़ाई मत करना । हत्या करने से महा पाप होता है, इस के सिषा संख्या में बहुत होमे पर भी तुम कमज़ोर और अनहीम हो । तुम केवल काम करते रहो ओर अपमे देशवासियों को समझाते रहो । प्रट प्रिटेन अपमे स्वार्थों के लिये जब तक मारतवर्ष को पोछे की ओर खींचता रहेगा तब तक यह तुम्हें स्वराम (दोमरून) महीं देगा । इम जितमे दिन प्रिटेन की चीज़ खरीदते रहेंगे उत्तमे दिन तक भारत को पराधीन रसमे के लिये निटेम के हाथों को मजबूत पमाते रहेंगे।" हजारों उत्साही प्रचारक उसकी यह वाणी जन साधारण तक पहुँचाया करते है। अगणित शताब्दियों से येखबर सोया दुधा मिशाल भारत सस महापुरुष की पाणी सुनकर जागरण के लिये सगवगाने लगा है। यह कहता है-"हमें स्वराज्य क्या है। इसके लिये अधिक मायापची फरने की भाषश्यकता महों । महात्मा गांधी की यही पाता है। यह एक साधु पुरुष है। बस, उनकी प्रामा है कि हम लोग यिदेशी धस्त्र म प्ररी। पह पुम्म की पात है, परतु उस से हमारी भावाई होगी। -महात्मा गांधी कह रहे है, इसलिये हम अपश्य हो उसकी माता का पालन करेंगे।" महात्मा गाँगो ब्राह्मण महीं, पैश्य है-दुकानदारों की