पृष्ठ:२१ बनाम ३०.djvu/७९

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

1 ( ६४ ) देखने से मालूम होता है, कि उसका सिर शरीर से मिला हुआ है । उसका प्रावरण जादूगरों की तरह नहीं होता। घहएक साधारण आसन पर बैठा रहता है। दोनों हाथ शान्त भाव से दोनों भुजाओं पर पड़े हैं। पैर पीछे की ओर मिले हुए हैं। उसका कण्ठस्वर भी जादूगर की तरह नहीं । आवाज़ ऊँधी और स्पष्ट होती है। मुखमण्डल पर किसी भाषका परिवर्तन नहीं सदेव दयाभाव टपकता रहता है। परन्तु यह सब होते हुए भी उसे मायाषा कहना पड़ता है। क्योंकि यह जो कुछ कहता है, दर्शन शास्त्र की तरह गम्भीरतापूण होता है, उपदेश की तरह सुमाई देता है और महाशक्तिशाली मन्त्र की तरह कार्य करता है। उसके प्रभाष से लंकाशापर की घोर गर्जन करने वाली पड़ो-यरी मिले मामों शकिहीम सी हो रही हैं। उनका घोर गर्जन मामों एक दिन मामूली घनप्रमाट की शक्ल में परिणत हो जाने याला है। शीघ्र ही बजारो कर्महोन और शकिहीम व्यकि स्वच्छापूर्वक उस कएपर प्रती होकर अपने स्वदेशी भाषों में बले जायेंगे। यह अवश्य ही होगा । क्योंकि उस ताम्रषण मनुष्य के समुत्सुक घेले उसके मुह से निकलते ही उसकी पाणी का प्रचार देश के कोने २ में कर देते हैं। प्रप्तख्य मनुष्यों में महात्मा गान्धी के माम से विख्यात वह छोटे फदका तान पण मनुष्य कहा करता है-"स्वराज तुम्हारे अभ्यन्तर 2