पृष्ठ:२१ बनाम ३०.djvu/८६

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(०१) वासी ससार की किसी भी जाति की अपेक्षा कम शोर्य शाखी और सेजस्वी एवं पुसिमान न ये। १८वीं शताब्दि का भारत वर्ष विद्या का मामी का औरणा शक्ति का केन्द्र था, फिर भी देश को अनायास ही प्रेमो मे कम्ज़ में कर लिया, जिस देश को प्रवल योगा, और कट्टर यर्धन शील मुसलमान 900 यी में-कभी मिर्वि नशासम न कर सके उसे श्रमजो ने ५० ही वर्ष के अन्दर अनायास मुट्ठी मरे तुच्छ और पाजी व्यक्तियों के द्वारा अधिछत कर लिया और १०० यपी में पफक्षत्र छाया के बाद से मोहित करके मोद मिद्रा में मुला दिया । पदि इसे बाद मारा काम कहा माय तो अत्युकि न होगी। क्याम के कारणों पर विचार किया जा सकता है। माप कह सकते हैं कि एकता का प्रभाव ही इस का कारण ६, पफता का प्रभाष इस का कारण हो सकता है परन्तु पही फेवल काप्ण महीं । फ्या महाभारत के युद्ध के समय एकता का प्रभाव न था। पन्द्रगुप्त और अशोफ के समय मी एकताथी तिहास बताता है एकता मारत में कमीन थी यह मुगल राज्य का धौर १० वीं शताम्दि में भी न थी। प्राप दूसरा उसर यह दे सकते हैं किप्रकों के गुण भी इस सफलता का मूल कारण है । परन्तु क्या कारण और पारन हैटिंग जैसे नर पशु कू गुणों के बल पर भारत में