हियो मे हुई ज़रा-सी मुठभेढ का एक बहाना लेकर जापान ने चीन से युद्ध
छेड़ दिया। जापानी सेना ने चीन के एक विशाल प्रदेश सहित, दिसम्बर
१९३७ मे, चीन की राजधानी नानकिंग् पर अधिकार जमा लिया और वहाँ
वाग् चिंग्-वी की अध्यक्षता मे खिलौना-सरकार बना दी। चीन-सरकार अपनी
राजधानी दक्षिण-पश्चिमी चीन के चुग्किंग् नगर मे उठा ले गयी। ब्रह्मा
(बर्मा) से चुग्किंग् तक एक सड़क बनाई गई थी। यह बर्मा-रोड कहलाती
है, जिसे १९४२ के अप्रैल तक चीन-सरकार इस्तेमाल करती रही; किन्तु
अप्रैल मे, ब्रह्मा के पतन के साथ, यह सड़क भी जापानियो के अधिकार मे
चली गई। जगी रसद और दूसरा अमरीकी और बरतानवी सामान
आदि इसी मार्ग से चीन को जाता था,क्योंकि चीन के समुद्र-तटवाले
प्रदेशो पर जापानियों का प्रभुत्व है। चीनी साम्यवादियो ने पुराने भेदभाव
को भुलाकर, देश की आजादी की प्रेरणा से प्रभावित होकर, जनरलिस्सिमो
चियाग् से समझौता कर लिया है और अपनी सेनाएँ, जापानियों से लड़ने
के लिये, उनकी कमान (Command) में दे दी हैं, पर देश के भावी शासन-विधान के सम्बन्ध मे उनका आन्तरिक मतभेद है। चीन के सथ सोवियट रूस
की सबसे अधिक क्रियात्मक सहानुभूति पहले से रही है। ब्रिटेन और सयुक्त-राज्य
अमरीका भी, अपने हितों की रक्षा के लिये, चीन सहायता-सहानुभूति पीछे
से करने लगे हैं और आज रूस के साथ चीन की भी साथी मुल्कों (United
Nations) में गणना करते हैं। भारत और चीन का तो पुरातन सांस्कृतिक
सम्बन्ध है। सन् १९३९ मे प० जवाहरलाल नेहारू चियाग् काई-शेक तथा अन्य
नेताओ से भेट करने चीन गये। उन्होंने चीन का भ्रमण भी किया तथा भारत
का संदेश सुनाया। आपके ही पयत्न से, कांग्रेस की और से, एक डाक्टरी
सेवा-दल चीनी रणक्षेत्र पर भेजा गया था। अँगरेजों की ४५,००,००,०००
पौंड की पूँजी चीन के उद्योगधन्धो और व्यवसायो मे और सयुक्त-राज्य अमरीका की ४०,००,००,००० डालर की पूँजी चीन के उद्योग मे लगी हुई
है। चीन ही अकेला संसार मे सबसे बढा पिछड़ा प्रदेश है जिसका अभी तक
यूरोपीय देश बँटवारा नही कर सके हैं। इसलिये चीन पर आज समस्त
प्रगतिवादी देशो की दृष्टि लगी हुई है। चीन के मचूरिया (मचूक़ो)
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चीन